मस्सों का आयुर्वेदिक / घरेलू उपचार
यह बात आप शायद न जानते हों कि मस्से ‘ह्युमन पैपिल्लोमा वाइरस’ के कारण विकसित होते हैं।
मस्सों के लक्षण
त्वचा पर बेडौल और रुखी सतह का विकास होना, मस्सों के लक्षण होते हैं। मस्से अपने आप विकसित होकर अपने आप ही गायब हो जाते हैं, पर इनमे से कई मस्से अत्याधिक पीड़ादायक होते हैं। यह तेज़ी से फैलते हैं, और इनमे से कई मस्से बरसों तक बने रहते हैं जिनका इलाज कराना ज़रूरी होता है।
मस्सों के आयुर्वेदिक / घरेलू उपचार
• बरगद के पेड़ के पत्तों का रस मस्सों के उपचार के लिए बहुत ही असरदार होता है। इस प्रयोग से त्वचा सौम्य हो जाती है और मस्से अपने आप गिर जाते हैं।
• एक चम्मच कोथमीर के रस में एक चुटकी हल्दी डालकर सेवन करने से मस्सों से राहत मिलती है।
• कच्चे आलू का एक स्लाइस नियमित रूप से दस मिनट तक मस्से पर लगाकर रखने से मस्सों से छुटकारा मिल जायेगा।
• केले के छिलके को अंदर की तरफ से मस्से पर रखकर उसे एक पट्टी से बांध लें। और ऐसा दिन में दो बार करें और लगातार करते रहें जब तक कि मस्से ख़तम नहीं हो जाते।
• अरंडी का तेल नियमित रूप से मस्सों पर लगायें। इससे मस्से नरम पड़ जायेंगे, और धीरे धीरे गायब हो जायेंगे। अरंडी के तेल के बदले कपूर के तेल का भी प्रयोग कर सकते हैं।
• लहसून के एक टुकड़े को पीस लें, लेकिन बहुत महीन नहीं, और इस पीसे हुए लहसून को मस्से पर रखकर पट्टी से बांध लें। इससे भी मस्सों के उपचार में सहायता मिलती है।
• एक बूँद ताजे मौसमी का रस मस्से पर लगा दें, और इसे भी पट्टी से बांध लें। ऐसा दिन में लगभग 3 या 4 बार करें। ऐसा करने से मस्से गायब हो जायेंगे।
• बंगला, मलबारी, कपूरी, या नागरबेल के पत्ते के डंठल का रस मस्से पर लगाने से मस्से झड़ जाते हैं। अगर तब भी न झड़ें, तो पान में खाने का चूना मिलाकर घिसें।
• अम्लाकी को मस्सों पर तब तक मलते रहें जब तक मस्से उस रस को सोख न लें। या अम्लाकी के रस को मस्से पर मल कर पट्टी से बांध लें।
100 साल तक स्वस्थ जिंदगी जीना हो तो क्या करें
ग्लूटेथियोन शरीर में पाया जाने वाला बहुत शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट है जो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से बचाता है। अगर शरीर में इसकी कमी हो जाये तो कई प्रकार की सामान्य और खतरनाक बीमारी होने लगेगी। हल्दी का सेवन करने से शरीर में ग्लूटेथियोन की मात्रा बढ़ती है और बीमारियों से बचाव होता है।
तनाव से बचें
हमारे जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन तनाव भी है, तनाव के कारण ही उम्र बढ़ती है और कई प्रकार की सामान्य और खतरनाक समस्या होती है। नियमित व्यायाम और योग करके तनाव से बचाव संभव है। सुबह के वक्त ब्रेकफास्ट करने से भी तनाव नहीं होता।
व्यायाम है जरूरी
नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ रहता है और उम्र बढ़ती है। उच्च तीव्रता वाले व्यायाम करने से मांसपेशियां मजबूत होती हैं और जीवन लंबा होता है। इसलिए स्ट्रेंथ ट्रेनिंग जरूर करें, सप्ताह के कुछ दिन व्यायाम में जरूर बितायें।
बीच-बीच में उपवास
पाचन तंत्र के आराम के लिए और उम्र बढ़ाने के लिए बीच-बीच में उपवास जरूर करें। अगर आप उपवास करते हैं तो इससे आपके शरीर में कम कैलोरी जायेगी और यह उम्र बढ़ाने में कारगर भी रहेगा। उपवास रखने से कैंसर होने का खतरा भी कम होता है। तो बीच में क्यों न उपवास रखा जाये।
खाने में हो विभिन्नता
बॉयोकेमिस्ट्री के कारण ही हम जीवित हैं। हमारा शरीर पौष्टिक तत्वों से ऊर्जा पाकर क्रियाशील होता है, विभिन्न प्रकार की सब्जियां प्राकृतिक दवाओं का काम करती हैं। विभिन्न रंगों की सब्जियों में भरपूर पौष्टिकता होती है। इसलिए लंबी उम्र पाने के लिए खाने को रंगीन बनाइये। अपने आहार में ताजी और हरी सब्जियों को शामिल कीजिए।
चाय पियें
चाय के लाभ के बारे में हमने कई बार पढ़ा और सुना होगा, लेकिन चाय की उम्र बढ़ाने के गुण से शायद हम अनजान ही थे। अगर आप दिन में 3 कप चाय पीते हैं तो इससे उम्र बढ़ती है, इससे अधिक चाय पीने से नुकसान हो सकता है। ब्लैक टी और ग्रीन टी में पॉलीफेनल नामक तत्व पाया जाता है जो कई प्रकार की बीमारियों से बचाता है।
स्वस्थ वसा खायें
फैट यानी वसा हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है, लेकिन अगर हेल्दी फैट का सेवन किया जाये तो यह बीमारियों का नहीं बल्कि बेहतर स्वास्थ्य का कारण बनता है। लंबे और स्वस्थ जीवन के लिए स्वस्थ वसा बहुत जरूरी होता है। केवल हमारे दिमाग की बात की जाये तो यह 60 प्रतिशत वसा और 30 प्रतिशत कोलेस्ट्रॉल से बना है। नारियल तेल, बटर ऑयल, एवोकैडो से मिले वसा दिमाग को सही तरीके से काम करने में मदद करते हैं। ये वसा हमारे शरीर के लिए जरूरी घुलनशील विटामिन ए, विटामिन डी और विटामिन के12 के लिए भी जरूरी हैं।
भरपूर नींद है जरूरी
शरीर की मांसपेशियों की मरम्मत के लिए भरपूर नींद बहुत जरूरी है। अनिद्रा और भरपूर नींद न लेने वालों की उम्र तो बढ़ती है साथ ही उन्हें स्ट्रोक, दिल का दौरा, डायबिटीज, तनाव आदि समस्यायें होने का खतरा अधिक होता है। इसलिए अगर आप लंबी उम्र चाहते हैं तो 7-9 घंटे की नींद जरूर लें।
रसीले होंठों के लिए घरेलू टिप्स
चेहरे की दमक फीकी पड़ जाती है अगर होंठों फटे और रूखे हों। ऐसे में आप कितना भी लिप बाम लगाएं पर उनकी प्राकृतिक नमीं के लिए ठोस उपाय जरूरी है।
ऐसे में अदरक, शहद और शक्कर से आप घर पर ही लिप स्क्रबर बना सकते हैं जिससे होठों को भरपूर नमीं भी मिलेगी और आपका बजट भी नहीं ढीला होगा।
इनमें मौजूद विटामिन सी होंठों की त्वचा को बेहतर बनाता है और होठों को प्राकृतिक तौर पर ग्लॉसी बनाता है। इसे बनाने के लिए एक चम्मच शक्कर लें। एक चम्मच शहद लें, एक अदरक का टुकड़ा और एक जार रखें। एक कटोरी में एक चम्मच चीनी रखें।
अदरक के टुकड़े को अच्छी तरह साफ करने के बाद छील लें और बारीक काट लें। अदरक के कारण होठों पर रक्त संचार अच्छी तरह होता है।
अब इसमें शहद मिलाएं और अच्छी तरह फेंट लें। यह मिश्रण दानेदार जेली की तरह लगना चाहिए। इसे लगाने में कुछ चीजों का ध्यान देना जरूरी है। पुराने टूथब्रश या मस्कारा ब्रश की सहायता से होंठो पर लगाएं।
हल्के हाथों से होंठों पर गोलाकार मसाज करें और फिर कुछ सेकंड के लिए छोड़ दें।
इसे गुनगुने पानी या टिशु पेपर से साफ करें। नियमित तौर पर इसके इस्तेमाल से होठों की नमीं वापस लौट आएगी।
हाथ से खाना खाने के बहुत से फायदे है
हाथ से खाने के बहुत से फायदे है. हमारी पुरानी भारतीय परंपरा में हाथ से ही खाया जाता था लेकिन पश्चिमी सभ्यता के हावी होने से इसकी जगह छुरी, कांटे और चम्मच ने ले ली है.
आयुर्वेद में भी हाथ से भोजन करने के कई फायदे माने गए हैं. आयुर्वेद के अनुसार, शरीर पांच तत्वों से बना है- धरा, वायु, आकाश, जल और अग्नि. इन पांचों तत्वों में होने वाला असंतुलन शरीर में कई बीमारियों का कारण होता है.
हाथ से कौर बनाते वक्त जो मुद्रा बनती है उससे शरीर में पांच तत्वों का संतुलन बरकरार रहता है और ऊर्जा बनी रहती है. इतना ही नहीं, हाथ से खाने से खाना आसानी से पच जाता है और वजन भी नहीं बढ़ता है. आगे की तस्वीरों में जानिए हाथ से खाने के और फायदे.
हाथों का स्पर्श दिमाग के लिए सबसे प्रगाढ़ संवेदना है. खाने को सीधे हाथ से उठाते वक्त इसके स्पर्श से हमारा दिमाग सक्रिय होता है और खाने से पहले ही पेट को पाचन के लिए सक्रिय होने के संकेत देता है जिससे पाचन में मदद मिलती है और खाना आसानी से पच जाता है.
हाथ से खाना खाने से वजन संतुलित रहता है. हाथ से खाने पर जब भी हमारा पेट भर जाता है तब हमारे दिमाग को संतुष्टि मिल जाती है, इससे हम ओवरईटिंग से बच जाते हैं. इसकी वजह से वजन संतुलित रहता है.
हाथ से खाते वक्त हमारा ध्यान केवल खाने पर होता है. हमारा ध्यान इसपर अधिक होता है कि हम क्या खा रहे हैं और हमारा ध्यान कहीं और की बजाय खाने पर होता है. यह हमें अधिक खाने से बचाता है.
हाथ से खाते वक्त मुंह भी नहीं जलता है. भोजन कितना गर्म है इसका एहसास स्पर्श से ही हो जाता है और अगर खाना अधिक गर्म है तो इसकी जानकारी हाथ से खाने से हो जाती है, इसके कारण मुंह जलने से बच जाता है. जबकि छुरी, कांटे और चम्मच से इसका पता नहीं चलता.
कैसे वापस पाएं खोई हुई खूबसूरती
चमकती और खूबसूरत स्किन आपके स्वस्थ होने की निशानी है। अगर प्रदूषण या बदलते मौसम की वजह से स्किन की चमक फीकी पडऩे लगे, तो ऐसे में थोड़ी सी देखभाल से स्किन की खोई हुई खूबसूरती वापस पाई जा सकती है।
अंडर आर्म की त्वचा रूखी और पैची लग रही हो तो स्लीवलैस आऊटफिट पहनने से पहले स्क्रब से अंडर आर्म को एक्स-फोलिएट कर लें।
बाल जड़ों से चिपचिपे लग रहे हों तो मेकअप ब्रश को लूज पाऊडर में डिप करें। उसे हथेली के पीछे डैब करें, ताकि एक्स्ट्रा पाऊडर निकल जाए। अब इसे बालों की जड़ों पर डस्ट करें। ये बालों के ऑयल को सोख लेगा और चिपचिपेपन से तुरंत छुटकारा मिलेगा। परफ्यूम को हेयर ब्रश पर स्प्रे करें और इससे बालों को ब्रश करें। आपके बाल दिन भर महकते रहेंगे।
अगर आई मेकअप करते समय मेकअप फैल गया हो और पूरा मेकअप दोबारा करने का समय न हो, तो कॉटन को आई मेकअप रिमूवर में डिप करके सावधानी से फैले हुए मेकअप को ठीक कर लें।
आईब्रोज बिखरी-बिखरी लग रही हैं तो टूथ ब्रश या आईब्रो कोम पर हेयर स्प्रे करें और इससे आईब्रोज को संवारें।
अगर आपकी काजल पैंसिल अप्लाई करते हुए टूट जाती है, तो उसे इस्तेमाल से पहले 15 मिनट तक फ्रीजर में रख दें। इससे वो टूटेगी भी नहीं और आसानी से अप्लाई भी होगी।
मसूड़ों की बीमारियों का होम्योपैथिक इलाज
मसूड़ों से खून निकलना आम समस्या है और कई लोगों को यह परेशानी अपनी चपेट में ले लेती है। यह रोग किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है इसलिए मसूड़ों की सूजन का शुरूआती अवस्था में ही उपचार करा लेना चाहिए।
कारण
दांतों और मसूड़ों पर गंदगी जमा होने से सूजन आ जाती है इससे मरीज के मसूड़ों को थोड़ा सा छूने या ब्रश करने पर खून आने लगता है। कई बार तो लोग इस चक्कर में ब्रश करना ही छोड़ देते हैं।
होम्योपैथिक औषधियां
इस पद्धति में इलाज के लिए मेर्कसोल, क्रेओसोतुम, प्लातांगो, चिनोपोडियम,फ्रिगारिया, कैल्कारे-फ्लोर, एसिड-फ्लोर, हेक्ला लावा, रातान्हिया, कोफिया टोस्ता आदि का प्रयोग किया जाता है। (दवाओं का प्रयोग डॉक्टरी सलाह से करें)
घरेलू उपाय
अजवाइन: मसूढ़ों में सूजन होने पर अजवाइन के तेल की कुछ बूंदें पानी में मिलाकर कुल्ला करें।
नीम की दातुन: नीम की दातुन करने से दांत और मसूड़े स्वस्थ रहते हैं।
तिल: दांत दर्द में तिल को पानी में चार घंटे भिगो दें, फिर छानकर उसी पानी को मुंह में भरें और 10 मिनट बाद उगल दें। 4-5 बार ऎसा करें। इससे मुंह के घाव, दांतों में सड़न, संक्रमण और पायरिया से मुक्ति मिलती है।
नीम के फूल: नीम के फूलों का काढ़ा बनाकर पीने से मसूड़ों से गंध नहीं आती।
अपने दिमाग को धारदार कैसे बनाएं
अपने शरीर को फिट रखने के लिए आप अच्छा खाते हैं। और नियमित व्यायाम करते हैं। लेकिन, आखिर अपने दिमाग के लिए आप क्या करते हैं। याद रखिये यदि आपका मस्तिष्क स्वस्थ और तेज नहीं होगा, तो आपके लिए अपने रोजमर्रा के कामों को निपटा पाना भी आसान नहीं होगा।
बायां हाथ बढ़ाये रचनात्मकता
मस्तिष्क का दायां हिस्सा रचनात्मकता का ध्यान रखता है। और यही हिस्सा आपके शरीर के बायें हिस्से को नियंत्रित करता है। ब्रश करते समय, लिखते समय जैसे छोटे-छोटे काम करते समय अगर आप अपना बायां हाथ इस्तेमाल करते हैं, तो इससे आपकी रचनात्मकता में करीब 50 फीसदी तक बढ़ोत्तरी होती है। इजराइल में हुए एक शोध में यह बात प्रमाणित हुई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि केवल बायें हाथ की मुट्ठी खोलने बंद करने से भी आपकी रचनात्मकता में इजाफा होता है।
ग्रीन टी बढ़ाये एकाग्रता
थिनाइन एक प्रकार का एमीनो एसिड है जो हरी चाय की पत्तियों में पाया जाता है। यह मस्तिष्क में तनाव उत्पन्न करने वाले केमिकल्स को रोकता है। इससे चिंता दूर होती है और आपको एकाग्र करने में मदद मिलती है। जापानी शोधकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है। जर्नल ऑफ न्यूरोफारमाकोलॉजी में छपे एक लेख के अनुसार ग्रीन टी में पाया जाने वाला कैफीन थकान को दूर रखकर आपको जागृत और एकाग्र रखता है।
टेटरिस बढ़ाये दिमाग की क्षमता
मोबाइल पर टेढ़े-मेढ़े ब्लॉक जोड़ने वाली गेम भले ही आपको सामान्य लगे, लेकिन वास्तव में यह दिमाग की क्षमता को बढ़ाने काम करती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के मुताबिक इस गेम को खेलते समय दिमाग के ज्यादातर न्यूरॉन काम करते हैं।
नींद बढ़ायें याद्दाश्त
जर्मनी में हुए एक शोध के अनुसार 40 मिनट की नींद के बाद लोगों ने मैमोरी गेम में 25 फीसदी अधिक अंक हासिल किये। मस्तिष्क में शॉर्ट टर्म मैमोरी बहुत कम समय के लिए जमा होती है और यह आसानी से खत्म भी हो जाती है। तो, नींद हमारी याद्दाश्त की प्रक्रिया को मजबूत बनाती है और थोड़े समय के लिए रहने वाली याद्दाश्त को स्थायी बनाने में मदद करती है। इससे इन्हें रिकॉल करना आसान होता है।
विटामिन बी कम करे अल्जाइमर का खतरा
विटामिन बी का सेवन अल्जाइमर के खतरे को कम करता है। यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के शोध में यह बात सामने आई है कि जो बुजुर्ग लगातार दो साल तक नियमित रूप से संतुलित मात्रा में विटामिन बी का सेवन करते हैं, उन्हें अल्जाइमर होने का खतरा कम होता है। इसके साथ ही विटामिन बी डिमेंशिया और अल्जाइमर के खतरे को भी कम करता है। लेकिन, हरी पत्तेदार सबिजयां, अंडे, मीअ और मछली आदि एमीनो एसिड का स्राव करती हैं, जिससे उम्र संबंधित मस्तिष्क संकुचन में बढ़ावा होता है।
प्रतिक्रियात्मक समय बढ़ाये पानी
प्यासे लोगों के मुकाबले जिन लोगों के शरीर में पानी की कोई कमी नहीं होती, उनका रिएक्शन टाइम कम होता है। यहां तक कि शरीर में पानी की हल्की सी कमी से भी दिमाग को काफी नुकसान होता है। इस परिस्थिति में दिमाग आपको कुछ पीने की हिदायत देता है। यदि आप इस परिस्थिति में पानी नहीं पीते हैं, तो यह शरीर के अन्य हिस्सों से पानी खींचने लगता है। इसके साथ ही अगर आप कई घंटे से मूत्र त्यागने नहीं गये हैं, या फिर आपका पेशाब पीला है, तो आपको जरूर पानी पीना चाहिये। आहार में करिये बदलाव
यूके के शोधकर्ताओं ने पाया कि सेज (एक प्रकार की वनस्पति) का सेवन करने वाली महिलाओं की रिकॉल मैमोरी में 35 फीसदी का इजाफा देखा गया। सेज में एक्टीलकोलाइन नाम का एक एंटी-ऑक्सीडेंट होता है। यह रसायन अल्जाइमर के मरीजों के लिए भी फायदेमंद होता है। शोध में शामिल प्रतिभागियों ने केवल 50 माइक्रोलीटर के सेज के कैप्यूल का सेवन किया था और उसी से उन्हें इतना फायदा हुआ।
रोजमर्रा की जिंदगी में करें बदलाव
आप अपने खाली समय फेसबुक खेलते हैं या फिर सुडोकू सुलझाते रहते हैं। मैक्गिल यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार रोजाना एक जैसे काम करते-करते आपके मस्तिष्क को उसकी आदत हो जाती है। और ऐसे में उन कसरतों में आपके दिमाग को कम मेहनत करनी पड़ती है। और आपके मस्तिष्क जिन अंतग्रथियों का इस्तेमाल रोजाना करता है वे तो मजबूत हो जाती हैं, और बाकी धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं। कोनकार्डिया युनिवर्सिटी का शोध कहता है कि इस प्रभाव को कम करने के लिए अपनी दिनचर्या को बदलते रहिये। वर्कआउट से लेकर, खाना पकाने और खाने तक के अंदाज में बदलाव लाते रहें। इससे आपके मस्तिष्क को नयी-नयी ग्रंथियों का इस्तेमाल करने का मौका मिलेगा। इससे आपके आईक्यू में सुधार होगा। और साथ ही मस्तिष्क की कार्यक्षमता भी बढ़ेगी।
कपूर से कीजिए दर्जनभर बीमारियों का इलाज
कपूर का इस्तेमाल पूजा-पाठ के लिए किया जाता है। लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह बहुत फायदेमंद है। कपूर का प्रयोग कई प्रकार की बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है।
कपूर त्वचा और मांसपेशियों और ऊतकों में सूजन कम करता है। पुरानी जोड़ों और दर्द से छुटकारा दिलाने के लिए कपूर उपयोगी औषधि है। कपूर का तेल बहुत फायदेमंद है। कपूर का इस्तेमाल कई दवाओं में भी किया जाता है। कपूर से कई प्रकार के मरहम बनाये जाते हैं। आइए हम आपको कपूर से होने वाले फायदों के बारे में बताते हैं।
कपूर के लाभ
कपूर, आजवायन और पिपरमेंट को बराबर मात्रा में लीजिए, इनको एक शीशी में डालकर मिला लीजिए और उस शीशी को धूप में रख दीजिए। बीच-बीच में इस घोल को हिलाते रहिए। इसकी चार से आठ बूंदें बताशे में या चीनी के शर्बत में मिलाकर दस्त के रोगी को दीजिए। इससे दस्त में आराम मिलेगा।
पेट दर्द और बेचैनी के लिए भी कपूर बहुत फायदेमंद है। पेट दर्द होने पर कपूर और अजवायन और पिपरमेंट को शर्बत में मिलाकर पीने से पेट दर्द समाप्त हो जाता है।
त्वचा के लिए कपूर बहुत फायदेमंद है। कपूर कोशिकाओं को मजबूत बनाता है। इससे त्वचा में निखार आता है।
मांसपेशियों के दर्द को कपूर से दूर किया जा सकता है। मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होने पर कपूर के तेल से मालिश कीजिए। आराम मिलेगा और दर्द समाप्त हो जाएगा।
खुजली आने पर कपूर का प्रयोग कीजिए। खुजली वाली त्वचा पर लगाइये खुजली होना बंद हो जाता है।
गठिया के मरीजों के लिए भी कपूर फायदेमंद है। गठिया होने पर कपूर के तेल की मालिश करने पर आराम मिलता है।
जलने पर कपूर या कपूर का तेल लगाइए। जले पर कपूर लगाने से जलन खत्म होती है और राहत मिलती है।
कपूर बहुत खुशबूदार होता है। इसकी खुशबू और रासायनिक भिन्नता किसी देश में पैदा होने वाले कपूर के वृक्ष पर निर्भर करती है। कपूर के धुएं से आसपास का वातावरण अच्छा होता है।
दर्जनों बीमारियों से बचाता है 1 ग्लास गुनगुना पानी
आमतौर पर हम गरम या गुनगुने पानी को पीने से परहेज करते हैं। कहीं से भी आने पर फ्रिज का ठंडा पानी मिल जाए तो क्या कहने। लगता है ठंडा पानी पीने से पूरी प्यास मिट गई। आत्मा को जैसे तृप्ति मिल गई हो। लेकिन इसकी अनेक हानियां हैं।
अगर हमें स्वस्थ रहना है तो दिन में दो बार जरूर ही गुनगुना पानी का सेवन करना चाहिए। इससे न सिर्फ कई रोगों से लड़ने में शरीर सक्षम होगा बल्कि शरीर के भीतर की सफाई भी हो जाएगी। मन और शरीर दोनों ही तरोताजा अनुभव करेंगे।
होम्योपैथ के डाॅ. राणा प्रताप यादव की मानें तो गुनगुने पानी का सेवन हर व्यक्ति को करना चाहिए। इससे उन्हें मोटापे से निजात मिलेगी। कब्ज से निजात मिल जाती है। गुनगुना पानी चर्बी को घटाएगा और इससे वजन भी कम होगी। चर्बी कम करने में भी यह सहयोगी है। रक्त प्रवाह का संचार बढ़ेगा। रक्त प्रवाह संतुलित भी रहेगा और गुर्दे सेहतमंद रहेंगे।
गरम पानी पीने के और भी हैं फायदे
गुनगुना पानी शरीर को अंदर की सफाई करता है।
पाचन तंत्र ठीक करता है और कब्ज की समस्या से निजात मिलती है।
दिन में दो बार गरम पानी पीने से गुर्दे सेहतमंद रहते हैं। पिशाब संबंधी बीमारी में भी लाभप्रद है।
सुबह गरम पानी पीने से शरीर के सभी विषैले तत्व बाहर निकलते हैं।
गुनगुना पानी में नींबू और शहद डालकर सेवन करने से शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है।
चर्बी कम होती है। वजन घटता है और रक्त प्रवाह संतुलित रहता है। इससे रक्त प्रवाह संचार भी ठीक बना रहता है।
रोजाना एक गिलास सुबह गरम पानी पीने से फूड पार्टिकल्स टूटते हैं।
वजह, नींबू में पेकटिन फाइबर होते हैं जो बार-बार भूख लगने से रोकते हैं।
यूरिन के कलर से जानिए अपनी हेल्थ का हाल
यूरीन किडनी के माध्यम से रक्त से अतिरिक्त पानी और अपशिष्ट उत्पादों को निकालने का प्राकृतिक तरीका है। सामान्य मूत्र का रंग हल्के पीले से थोड़ा गहरा पीला हो सकता है। अगर यूरीन का रंग पीला हो तो ज्यादा चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है लेकिन एक दिन से ज्यादा ऐसा होने पर स्वास्थ्य समस्या होने का डर रहता है। ऐसे में खूब सारा पानी पीने की हिदायत दी जाती है, लेकिन अगर फिर भी यूरीन का पीलापन नहीं जा रहा हो तो तुरंत चिकित्सक के पास जाये। यहां पर यूरीन के कुछ रंग दिये गये हैं जो बताते हैं कि यूरीन का रंग हमारे स्वास्थ्य पर क्या असर करता है।
हल्का पीला
आदर्श यूरीन का रंग स्पष्ट या पीले रंग का होता है। यह रंग बताता है कि आप बिल्कुल स्वस्थ हैं, और अपने स्वयं को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड कर रहे हैं और आपका शरीर बहुत अच्छे से काम कर रहा है।
पीला
शरीर को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड नहीं करने पर यूरीन का रंग पीला हो जाता है। शरीर में अत्यधिक पसीना आने या कम हाइड्रेशन के कारण भी यूरीन का रंग पीला हो सकता है। इससे बचने के लिए आपको तरल पदार्थ अधिक से अधिक मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है।
गहरा पीला
दवाओं के कारण भी यूरीन का रंग गहरे पीले रंग में बदल सकता है। यूरीन का रंग गहरा पीला होने पर जितनी जल्दी हो सके अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए क्योंकि यह लीवर विकारों या हैपेटाइटिस में से किसी एक का लक्षण हो सकता है।
दूधिया सफेद
यूरीन का दूधिया सफेद रंग यूरीन मार्ग, यूरीन मार्ग के संक्रमण या किडनी की पथरी में बैक्टीरिया की उपस्थिति में वृद्धि का संकेत हैं। अगर आप यूरीन दूधिया सफेद रंग में बदल गया है तो तुरंत अपने डॉक्टर के पास जाये।
लाल या गुलाबी
यूरीन का रंग लाल या गुलाबी रंग में तब बदलता है जब आपने लाल रंग से बने भोजन या चुकंदर और ब्लैकबेरी जैसे प्राकृतिक लाल रंग का उपभोग किया हो। अगर इस तरह के खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं किया है, तो यह यूरीन से रक्त के आने का संकेत होता है। आपके यूननेरी सिस्टम, किडनी में पथरी या बहुत ज्यादा एक्सरसाइज के कारण लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने का कारण भी हो सकता है।
नारंगी
यूरीन समस्या को कम करने के लिए इस्तेमाल की जा रही दवाओं के कारण भ यूरीन का रंग नारंगी हो सकता है। इसके अलावा गाजर या गाजर के रस को लेने से भी यूरीन का रंग बदल कर नारंगी हो जाता है।
नीला या हरा
यूरीन का रंग नीला या हरा खाने में पड़े कृत्रिम रंग के कारण होता है। इसमें चिंता करने की कोई बात नहीं होती, हालांकि चिंता बनी रहती है। दुर्लभ मामलों में आनुवांशिक बीमारी के कारण भी यूरीन का रंग नीला और हरा हो जाता है।
यूरीन के रंग को प्रभावित करने वाले कारक
खाद्य पदार्थों के कारण यूरीन का रंग बदल सकता है। दवाओं, कीमोथैरेपी दवाओं, यूरीन मार्ग में संक्रमण के निदान के लिए ली गई दवाओं से भी यूरीन का रंग प्रभावित होता है। अगर आप इसमें से किसी को भी ले रहे हैं तो आपके यूरीन का रंग बदल सकता है।
चिकित्सा सलाह की जरूरत
अगर आप इस बारे में सुनिश्चित नहीं हो पा रहे हैं कि यूरीन के रंग में परिवर्तन का कारण क्या हैं तो आपको अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए। इसके अलावा यूरीन में ब्लड का आना भी एक गंभीर संकेत है, इसके लिए आपको तुरंत चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। नियमित स्वास्थ्य जांच से आपको इसके कारणों के बारे में जानकारी मिल सकती है।
सात कुदरती उपाय जो हाई बीपी पर लगाम लगाएं
तेज रफ्तार भागती जिंदगी ने हमारी रगों में खून की रफ्तार को भी जरूरत से बढ़ा दिया है। खून की यह बेहद तेज रफ्तार हमारी सेहत के लिए अच्छी नहीं। डॉक्टरी जुबान में इसे हाइपरटेंशन कहा जाता है यानी हाई बीपी। उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए हमें दवाओं का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन इसके साथ ही कुछ कुदरती उपाय भी हैं जिनके जरिये बीपी को काबू किया जा सकता है।
वॉक
तेज गति से चलते से न केवल आपकी फिटनेस में सुधार होता है, बल्कि साथ ही साथ इससे रक्तचाप को भी नियंत्रित करने में मदद मिलती है। व्यायाम करने से हमारे दिल की कार्यक्षमता में इजाफा होता है और वह ऑक्सीन का बेहतर इस्तेमाल कर पाता है। इसके लिए आपको कड़ा व्यायाम करने की जरूरत नहीं। सप्ताह में चार से पांच दिन तक 30 मिनट कार्डियो एक्सरसाइज करने से ही आपको काफी फायदा होगा।
गहरी सांस लें
प्राणायाम, योग और ताई ची जैसी श्वास प्रक्रियायें तनाव को कम करने में मदद करती हैं। इससे भी रक्तचाप को कम करने में मदद मिलती है। सुबह शाम पांच से दस मिनट तक इन क्रियाओं को करना आपकी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। गहरी सांस लें, आपका पेट पूरी तरह फूल जाना चाहिए। सांसे छोड़ते ही आपकी सारी चिंता बाहर निकल जाएगी।
आलू
आहार में पोटेशियम युक्त फलों और सब्जियों को शामिल करने से आप रक्तचाप को कम कर सकते हैं। यदि आप रोजाना 2 हजार से 4 हजार मिलीग्राम पोटेशियम का सेवन करने से आप स्वयं को उच्च रक्तचाप से दूर रख सकते हैं। शकरकंदी, टमाटर, संतरें का रस, आलू, केला, राजमा, नाशपति, किशमिश, सूखे मेवे और तरबूज आदि में पोटेशियम काफी मात्रा में होता है।
नमक का सेवन करें कम
नमक का अधिक सेवन करने से उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है। इसे कम करने के लिए आपको अपने भोजन में नमक की मात्रा कम करनी चाहिए। डॉक्टरों का मानना है कि नमक में मौजूद सोडियम की अधिक मात्रा हमारे शरीर के लिए अच्छी नहीं होती। इसलिए जरूरी है कि नमक का सेवन अल्प मात्रा में ही किया जाए।
डार्क चॉकलेट
डार्क चॉकलेट में फ्लेनोल्ड होते हैं, जो रक्तवाहिनियों को अधिक लचीला बनाने में मदद करते हैं। एक शोध के अनुसार डार्क चॉकलेट का सेवन करने वाले 18 फीसदी लोगों ने रक्तचाप में कमी आने की बात कही।
कॉफी
रक्तचाप पर कैफीन के असर को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद हैं। कुछ का मानना है कि कैफीन और रक्तचाप में कोई संबंध नहीं है, वहीं कुछ इससे असहमत हैं। इनके मुताबिक कैफीन रक्चाप को बढ़ाता है और रक्तवाहिनियों को संकरा कर देता है इसके साथ ही यह तनाव का खतरा भी बढ़ा देता है। इसके कारण दिल को अधिक क्षमता से काम करना पड़ता है। इससे रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है।
चाय पियें
गुलहड़ की चाय पीने से उच्च रक्तचाप की समस्या से बचा जा सकता है। डेढ़-दो महीने इस चाय का सेवन करने से रक्तचाप को सात प्वाइंट तक नीचे लाने में मदद मिलती है। कई शोध भी इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि इस चाय का सेवन रक्तचाप को नियंत्रित करने में काफी मदद करता है।
आराम है जरूरी
बेशक, जीवन में कामयाबी के लिए काम करना जरूरी है, लेकिन आराम की अहमियत को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक जो लोग सप्ताह में 41 घंटे से ज्यादा ऑफिस में गुजारते हैं, उन्हें उच्च रक्तचाप होने का खतरा 15 फीसदी तक बढ़ जाता है। हालांकि, आज के इस दौर में दफ्तर में काम करना बेहद जरूरी है, लेकिन इसकी भरपाई के लिए आपको व्यायाम करना चाहिए। आप जिम जा सकते हैं, खाना पका सकते हैं और सैर आदि के लिए कुछ समय निकाल सकते हैा। आप काम के घंटे समाप्त होने से आधा घंटा पहले ही अपना सारा काम निपटाने का लक्ष्य रखें ताकि आप समय पर घर जा सकें।
संगीत
संगीत आपके रक्तचाप को कम करने में काफी मदद करता है। इटली स्थित फ्लोरेंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का दावा है कि सही स्वर लहरियां आपके उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करती हैं। रोजाना हल्की-हल्की सांसें लेते हुए यदि आप मद्धम संगीत सुनें तो आपको उच्च रक्तचाप और थकान आदि से मुक्ति मिलती है।
एक सब्जी जो आपको इंफेक्शन से बचाए
हरा प्याज शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसमें फाइबर, पोटेशियम, मैगनीशियम और विटामिन बी व विटामिन के होता है। इसमें कैरोटिनॉइड जैसे ल्यूटिन और जिक्सानथिन भी होते हैं जो आंखों की रोशनी बढ़ाते है। इसमें मौजूद विटामिन ए भी आंखों के लिए उपयोगी होता है। हरे प्याज में एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल तत्व होते हैं जो शरीर को वायरल इंफेक्शन से बचाते हैं। जो लोग हरा प्याज खाते हैं, उन्हें सर्दी जुकाम और सांस संबंधी रोग नहीं होते। अगर आप भूख ना लगने जैसी समस्या से परेशान हैं तो हरा प्याज उसे ठीक कर सकता है। यह ना सिर्फ भूख बढ़ाता है बल्कि पाचन क्रिया भी सुधारता है। इसमें सल्फर होता है जो शरीर में रक्तसंचार को बढ़ाता है। यह कोलोन कैंसर के खतरे को भी कम करता है।
बुढ़ापे में कमजोर हड्डियों को मजबूत कैसे बनाएं
डाँ.दयाराम आलोक। 50 वर्ष की आयु के बाद शरीर की अस्थियां कमजोर होने लगती हैं,इसे अस्थि भंगुरता,अस्थि मृदुता या अस्थि क्षरण कहते हैं। हड्डिया पतली और खोखली होने लगती हैं और इतनी कमजोर व भंगुर हो जाती है कि झुककर किसी वस्तु को उठाने या साधारण भार पडने अथवा मामूली सी चोंट लगने पर भी अस्थि-भंग(बोन फ़्रेक्चर)हो जाता है।
केल्सियम, फ़ास्फ़ोरस व अन्य तत्व की कमी हो जाने से अस्थि मृदुता रोग होता है। इन तत्वों की कमी से अस्थि-घनत्व( बोन डेन्सिटी)का स्तर गिर जाता है। यह रोग पुरुषों की बजाय महिलाओं में ज्यादा होता है। कुल्हे की हड्डी, कलाई की हड्डी और रीढ की हड्डी के फ़्रेक्चर की घटनाएं ज्यादा होती हैं।
अस्थि भंगुरता के लिये निम्न कारण जिम्मेदार माने जाते हैं—
१) अधिक आयु होना
२) शरीर का वजन कम होना
३) कतिपय अंग्रेजी दवाएं अस्थि भंगुरता जनक होती हैं
४) महिलाओं में रितु निवृत्ति होने पर एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर गिरने लगता है। एस्ट्रोजन हार्मोन हड्डियों की मजबूती के लिये अति आवश्यक हार्मोन होता है।
५) थायराईड हारमोन
६) कोर्टिकोस्टराईड दवाएं लंबे समय तक उपयोग करना।
७)भोजन में केल्सियम तत्व-अल्पता
८) तम्बाखू,और शराब का अधिक सेवन करना
९) केमोथिरेपी
अस्थि भंगुरता का इलाज कुदरती पदार्थों से करना आसान ,कम खर्चीला ,आशु प्रभावी और साईड इफ़ेक्ट रहित होने से प्रयोजनीय है।
१) मांस खाना छोड दें। मांस में ज्यादा प्रोटीन होता है और यह प्रोटीन शरीर के केल्सियम को मूत्र के जरिये बाहर निकालता है। केल्शियम अल्पता से अस्थि-भंगुरता होती है। मांस की बजाय हरी पत्तेदार सब्जियों का प्रचुरता से उपयोग करें।
२) प्रतिदिन 1000 एमजी केल्सियम और 500 एमजी मेग्नेशियम उपयोग करें। यह ओस्टियो पोरोसिस( अस्थि मृदुता) का उम्दा इलाज है। खोखली और कमजोर अस्थि-रोगी को यह उपचार अति उपादेय है।
३) एक चम्मच शहद नियमित तौर पर लेते रहें। यह आपको अस्थि भंगुरता से बचाने का बेहद उपयोगी नुस्खा है।
४) वसा रहित पावडर का दूध केल्सियम की आपूर्ति के लिये श्रेष्ठ है। इससे हड्डिया ताकतवर बनती हैं। गाय या बकरी का दूध भी लाभकारी है।
५) विटामिन “डी ” अस्थि मृदुता में परम उपकारी माना गया है। विटामिन डी की प्राप्ति सुबह के समय धूप में बैठने से हो सकती है। विटामिन ’डी” शरीर में केल्सियम संश्लेशित करने में सहायक होता है। शरीर का 25 प्रतिशत भाग खुला रखकर 20 मिनिट धूप में बैठने की आदत डालें।
६) अधिक दूध वाली चाय पीना हितकर है। दिन में एक बार पीयें।
७) सोयाबीन के उत्पाद अस्थि मृदुता निवारण में महत्वपूर्ण हैं। इससे औरतों में एस्ट्रोजिन हार्मोन का संतुलन बना रहता है। एस्ट्रोजिन हार्मोन की कमी महिलाओं में अस्थि मृदुता पैदा करती है।सोयाबीन का दूध पीना उत्तम फ़लकारक होता है।
८) केफ़िन तत्व की अधिकता वाले पदार्थ के उपयोग में सावधानी बरतें। चाय और काफ़ी में अधिक केफ़िन तत्व होता है। दिन में बस एक या दो बार चाय या काफ़ी ले सकते हैं।
९) बादाम अस्थि मृदुता निवारण में उपयोगी है। 11 बादाम रात को पानी में गलादें। छिलके उतारकर गाय के 250 मिलि दूध के साथ मिक्सर या ब्लेन्डर में चलावें। नियमित उपयोग से हड्डियों को भरपूर केल्शियम मिलेगा और अस्थि भंगुरता का निवारण करने में मदद मिलेगी।
१०) बन्द गोभी में बोरोन तत्व पाया जाता है। हड्डियों की मजबूती में इसका अहम योगदान होता है। इससे खून में एस्ट्रोजीन का स्तर बढता है जो महिलाओं मे अस्थियों की मजबूती बढाता है। पत्ता गोभी की सलाद और सब्जी प्रचुरता से इस्तेमाल करें।
११) नये अनुसंधान में जानकारी मिली है कि मेंगनीज तत्व अस्थि मृदुता में अति उपयोगी है। यह तत्व साबुत गेहूं,पालक,अनानास,और सूखे मेवों में पाया जाता है। इन्हें भोजन में शामिल करें।
१२) विटामिन “के” रोजाना 50 मायक्रोग्राम की मात्रा में लेना हितकर है। यह अस्थि भंगुरता में लाभकारी है।
१३) सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हड्डियों की मजबूती के लिये नियमित व्यायाम करें और स्वयं को घर के कामों में लगाये रखें।
१४) भोजन में नमक की मात्रा कम कर दें। भोजन में नमक ज्यादा होने से सोडियम अधिक मात्रा मे उत्सर्जित होगा और इसके साथ ही केल्शियम भी बाहर निकलेगा।
१५) २० ग्राम तिल थोडे से गुड के साथ मिक्सर में चलाकर तिलकुट्टा बनालें। रोजाना सुबह उपयोग करने से अस्थि मृदुता निवारण में मदद मिलती है।
१६) टमाटर का जूस आधा लिटर प्रतिदिन पीने से दो तीन माह में हड्डियां बलवान बनती है और अस्थि भंगुरता में आशातीत लाभ होता है।
१७) केवल एक मुट्ठी मूंगफली से आप हड्डियों से सम्बन्धित सभी परेशानियों से मुक्ति पा सकते हैं| मूंगफली आयरन, नियासीन, फोलेट, केल्सियम और जिंक का अच्छा स्रोत है| इसमें विटामिन ई, के और बी 6 प्रचुर मात्रा में होते हैं| केल्सियम और विटामिन डी अधिक मात्रा में होने से यह हड्डियों की कमजोरी दूर करती है| इससे दांत भी मजबूत होते हैं| इसमें पाया जाने वाला विटामिन बी-३ हमारे दिमाग को तेज करने में मदद करता है| मूंगफली में मौजूद फोलेट तत्त्व गर्भा में पल रहे बच्चे के लिए लाभकारी होता है|
महिलाओं की सेहत के लिए क्यों जरूरी है मेथी
वैसे तो मेथी का सेवन दमा से लेकर कामेच्छा तक, कई मामलों में फायदेमंद है लेकिन महिलाओं के लिए इसका सेवन खास वजह से भी जरूरी है।
चाहे मेथी का सेवन साग के रूप में हो या फिर दाने के तौर पर, महिलाओं के लिए मासिक चक्र से जुड़ी समस्याओं के उपचार में यह काफी फायदेमंद माना दाता है।
जानें महिलाओं की सेहत के लिए मेथी के सेवन से जुड़े फायदे।
मेथी में सेपोनिन्स और डायोसजेनिन नामक दो ऐसे तत्व हैं जो शरीर में स्टीरॉयड्स व एस्ट्रोजन की तरह काम करते हैं। इनकी वजह से पीरियड्स के दौरान पड़ने वाले क्रैंप और पेट दर्द में आराम मिलता है।
इसमें आयरन की मात्रा अधिक है इसलिए गर्भावस्था के दौरान इसका सेवन जच्चा-बच्चा की सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है।
इसमें आयरन की मात्रा अधिक है इसलिए गर्भावस्था के दौरान इसका सेवन जच्चा-बच्चा की सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है।
मेथी में मौजूद डायोसजेनिन और आइसोफ्लेवोन्स मेनोपॉड के दौरान महिलाओं के मूड को नियंत्रित करने में मददगार माना जाता है।
मेथी में मौजूद डायोसजेनिन महिलाओं के शररीर में हार्मोनल संतुलन बनाए रखता है। इससे हार्मोन से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं।
वैरिकाज़ नसों के दर्द से मुक्ति के लिए क्या करें
वैरिकाज़ नसे काफ़ी दुख दायी होती है। इनसे बचने का शायद कोई इलाज नही है, लेकिन दर्द कम किया जा सकता है।
1 आप लंबे समय के लिए खड़े ना रहे। और अगर खडे है तो रक्त के संचय को रोकने के लिए हर कुछ समय मे अपने पैरों को हिला ले।
2 अपने पैरों फ्लेक्स करे। अपने पैरों की मांसपेशियों में करार से खून को ऊपर की ओर और नसों के बाहर बहने मे मजबूर कर सकते हैं।
3 पैर पर पैर ना रखे। इससे पैर की नसों पर दबाव बढ़ जाता है।
4 वजन प्रशिक्षण नसों पर भारी दबाव डाल सकते हैं। ज़ोरदार शारीरिक गतिविधि से बचें।
5 ठंडे या गुनगुने पानी से नहाने से आप नसों का सिकुड़ना रोक सकते हैं।
6 अगर आप मोटे हैं तो यह आपके नसों पर अनावश्यक दबाव डालेगा, अपने वजन को कम करे।
7 अपने आप कुछ आरामदायक जूते ला दे और विशेष अवसरों के लिए अपने ऊँची हील्ज रखे। ऊँची हील्ज के जूते में चलने से वैरिकाज़ नसे बढ़ सकती है।
स्लिम और फिट रहने के लिए क्या करें
हर कोई अच्छा जीवन जीना चाहता है तो आप अपने ज्यादा वजन के साथ क्यों परेशान हो रहे हैं. अच्छा जीवन जीना है तो आपको भी तो अपने लिए कुछ करना ही होगा.
आयुर्वेद में मोटापे का उपचार जीवन शैली की एक बीमारी के रूप में किया जाता है. वजन घटाने के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए इन सिद्धांतों का पालन एक महीने के लिए करें! याद रखें कि सरल व्यंजन और शारीरिक रूप से सक्रिय जीवन शैली फिट व दुबला रहने का रहस्य है. ऐसे आयुर्वेदिक उपचार जो असल काम करते हैं वह व्यापक जीवन शैली के बदलाव का एक हिस्सा है.
खान-पान में सादगी : कम तेल में ताजा एवं सरल रूप से पकाए गए भोजन को ही खाना चाहिए. खाने के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन डायट प्रोग्राम का प्रथम कदम है. मानसिक अनुशासन, डायट पर जाने वाले लोगों को अस्वास्थ्यकर भोजन न खाने की इच्छाशक्ति प्रदान करता है. इसलिए आसानी से हजम हो जाने वाले व्यंजन जैसे चावल, दलिया, उबली हुई सब्जियां, सब्जियों के सूप व आटे से बने पकवानों के विकल्पों का चयन करना चाहिए.
स्नैक : तले हुए या चिकने व्यंजनों का सेवन न करें. इसमें केरल में पारंपरिक रूप से बनाए जाने वाले केले के चिप्स भी शामिल हैं. पापड़ को तेल में तलने के बजाय तवे पर सेंक कर खाना ही बेहतर है.
उच्च फाइबर युक्त अनाज : चावल या उबली हुई सब्जियों के साथ उच्च फाइबर युक्त जौ का सेवन करें. इन खाद्य पदार्थों का सामान्य रूप से सेवन भी तृप्ति प्रदान करता है. इन्हें अनिवार्य रूप से दोपहर या रात के खाने के साथ खाएं. इसके अलावा कभी-कभी जौ एवं दलिये को भी अपने आहार में शामिल करें. अत: बाहर के व्यंजनों का या डिब्बा बंद भोजन का सेवन न करें.
मिठाई और डेसर्ट : चाय में चीनी के अलावा अन्य किसी भी मिठाई को न खाएं. चूंकि चावल रक्त में शर्करा को बनाए रखता है, जिसके कारण आपके शरीर को ग्लूकोस की कमी महसूस नहीं होती और न ही आपको भूख लगती है.
प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ : अपने शरीर की प्रोटीन की जरूरत को सोया, चने की दाल, हरे चने तथा अन्य दालों के सेवन से पूर्ण करें. आयुर्वेद में मांसाहारी भोजन पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है.
छाछ तथा पानी : दही के बजाय छाछ का सेवन बेहतर होगा. इसके अलावा चाय व कॉफी का सेवन भी कर सकते हैं. स्वयं को हाइड्रेटड तथा भूख के बचने के लिए हर रोज डेढ़ लीटर गुनगुना पानी पिएं. गुनगुना पानी पेट में लंबे समय तक रहता है, जिसके कारण भूख भी देर से लगती है.
अपने पसंदीदा व्यंजनों से परहेज करें : अगर आपको चावल पसंद है, तो अपने आहार में चावल के बजाय आटे का डोसा या रोटी को शामिल करें, इस तरह आप स्वभाविक रूप से कम खाएंगे. अगर आप रोटी खाने वालों में से है तो आपके लिए चावल के बने व्यंजन मददगार साबित होंगे.
कैलोरी की गणना न करें : कैलोरी की गणना करने के बजाय अपने जीवन तथा अपने खान-पान में अनुशासन लाएं. आपके खान-पान की आदतों में तब्दीली तथा खाने के प्रति रवैया आपके वजन को बनाए रखने में तथा उसे कम करने में आपकी मदद करेंगे.
सुबह जल्दी उठना : यदि आप सुबह जल्दी उठेंगे तो आपकी दिनचर्या अच्छी बनी रहेगी. दिन में न सोना या देर रात तक टीवी न देखने जैसे जीवनशैली के नियम भी आपके वजन को कम करने में मददगार सिद्ध होंगे.
वक्त से पहले गिरते बालों को बचाने के लिए क्या करें
आजकल युवावस्था में ही लोगों के बाल गिरने लगते हैं। बालों का गिरना किसी के लिए भी तनाव और चिंता का कारण हो सकता है। बालों के समय से पहले गिरने की समस्या यदि आनुवंशिक हो तो उसे एंड्रोजेनिक एलोपेसिया कहा जाता है। इस समस्या से परेशान पुरुषों में बाल गिरने की समस्या किशोरावस्था से ही हो सकती है, जबकि महिलाओं में इस प्रकार बाल गिरने की समस्या 30 की उम्र के बाद होती है।
इसके अलावा, खान-पान और पर्यावरण प्रदूषण, दवा के रिएक्शन व कई अन्य कारणों की वजह से कम उम्र में गंजेपन की समस्या हो सकती है। यदि आप भी कम उम्र में गंजेपन की समस्या से जूझ रहे हैं, तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं गंजापन दूर करने के कुछ घरेलू उपाय।
जटामांसी को नारियल तेल में उबाल लें। इस तेल को ठंडा करके किसी बोतल में भरकर रख लें। रोजाना रात को सोने से पहले इसकी मालिश करें। बालों का असमय सफेद होना और गिरना बंद हो जाएगा।
जरूरत से ज्यादा नमक लेने से भी गंजापन जाता है। नमक और काली मिर्च एक-एक चम्मच और नारियल का तेल पांच चम्मच मिलाकर गंजेपन वाले स्थान पर लगाने से बाल फिर से आने की संभावना बढ़ जाती है।
सरसों के तेल में मेहंदी की पत्तियां डालकर गर्म करें। ठंडा करके बालों में लगाएं। रोजाना इसे लगाने से बालों का गिरना रुक जाता है।
कलौंजी को पीसकर पानी में मिलाएं और इस पानी से बाल धोएं। माना जाता है कि कलौंजी के पानी से बाल घने होते हैं।
गेंदे के फूलों को पीसकर उनका रस निकाल लेंं। इनके रस को नारियल तेल में डालकर उबाल लें। इसे तब तक उबालें जब तक कि तेल में रस पूरी तरह मिश्रित न हो जाए। इसके बाद तेल को ठंडा करके किसी बोतल में भर लें। इस तेल को लगाने से बाल गिरने बंद हो जाते हैं।
एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर में थोड़ा जैतून का तेल मिलाकर पेस्ट बनाएं। नहाने से पहले इस पेस्ट को बालों में लगा लें। 15 मिनट बाद गर्म पानी से बाल धोएं। ऐसा करने पर कुछ ही दिनों में बाल गिरने की समस्या दूर हो जाएगी।
अमरबेल को पानी में उबालें। इस पानी से बाल धोने से बाल गिरने की समस्या खत्म हो जाती है।
गुड़हल के फूलों का रस निकाल लें। इससे बालों की मसाज करें। एक घंटे बाद सिर धो लें। बाल काले, घने और मजबूत हो जाएंगे।
हल्के गर्म जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर का पेस्ट बनाएं। नहाने से पहले इस पेस्ट को सिर पर लगा लें। 15 मिनट बाद गुनगुने पानी से बाल धोएं। कुछ दिनों बाद बाल गिरने की समस्या दूर हो जाएगी।
दो लीटर पानी में थोड़ा आंवले का चूर्ण और नीम की पत्तियां डालकर पानी को उबाल कर आधा कर लें। इस पानी से सप्ताह में कम से कम एक बार बाल धोएं। बाल गिरने बंद हो जाएंगे।
जैतून के तेल को हल्का गर्म कर लें। इस तेल में बहेड़ा का चूर्ण मिलाएं। इस मिश्रण को बालों की जड़ों में लगाएं। एक घंटे बाद बाल धो लें। बाल घने होने लगेंगे।
मेथी की सब्जी बालों की सेहत के लिए अच्छी मानी जाती है।
मेथी दानों को रात को पानी में भिगो दें। सुबह इन्हें पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को बालों में लगाएं। आधे घंटे बाद सिर धो लें। ऐसा सप्ताह में दो बार करने से बाल गिरने की समस्या दूर हो जाती है।
यदि आप नशीले पदार्थों का सेवन या धूम्रपान करते हैं तो बंद कर दें। बाल गिरना जल्द ही कम हो जाएंगे। अधिक से अधिक पानी पिएं। चाय- कॉफी कम लें।
फूड पॉइजनिंग से बचने के लिए क्या करें
गर्मी के बाद बरसात आते-आते कई बीमारियां दस्तक देने लगती है. इनमें से आम बीमारी है फूड पॉइजनिंग की. अगर आप अपने खाने-पीने में साफ-सफाई का ध्यान न रखें तो इस तरह की समस्याओं से रू-ब-रू होना पड़ सकता है.
यह खाने में बैक्टीरिया की वजह से होती है. फूड पॉइजनिंग में बुखार, उल्टी- दस्त होना, चक्कर आना और शरीर में दर्द होना आम बात है. कुछ बातों का ध्यान रखकर इस समस्या से बचा जा सकता है.
जो भी खाना खाएं वह ताजा व गर्म हो. ध्यान रहे कि जिन बर्तनों और जिस जगह पर आप खाना खा रहे हैं वे साफ-सुथरी हों. खाने से पहले हाथ अच्छे से धो लें। बाजार में खुले में बिकने वाले खाने या तली-भुनी चीज, गोलगप्पे आदि से इन दिनों परहेज करें.
फूड पॉइजनिंग होने पर एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू, नमक और शक्कर मिलाकर पीना चाहिए. उल्टी हो रही हो तो एक टेबल स्पून दही में एक चम्मच दानामेथी मिलाकर लेने से लाभ होगा. अगर दूषित खाद्य पदार्थ खाने के बाद आपको लगातार उल्टी हो रही हो, उल्टी के दौरान खून आए, पेट में तेज दर्द हो, बोलने और दिखाई देने में तकलीफ हो, कमजोरी महसूस होने जैसे लक्षण हो तो फौरन अपने डॉक्टर से संपर्क करें
एसिड से बाथरूम साफ करोगे तो बीमार हो जाओगे
एक सर्वेक्षण के अनुसार बाथरुम की सफाई के लिए काम में लिये जाने वाले एसिड से श्वास, खांसी, आंखो में जलन जैसी बीमारियां हो सकती है. इंडियन मेडिकल एकेडमी की ओर से जयपुर सहित देश के छह शहरों में बाथरुम की सफाई में एसिड के इस्तेमाल पर किये गये सर्वे में यह तथ्य सामने आये हैं. एकेडमी के सलाहकार डॉ. नूरल अनवर और सवाई मान सिंह अस्पताल के पूर्व अघीक्षक अस्थमा रोग विशेषज्ञ वीरेन्द्र सिंह ने सर्वे की रिपोर्ट जारी करते हुए ये बातें बतायीं.
सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 450 परिवारों में से 47 प्रतिशत ने सांस लेने में तकलीफ, 21 प्रतिशत ने आंखो में पानी, 15 प्रतिशत ने त्वचा में जलन, 12 प्रतिशत ने शरीर में जलन और 5 प्रतिशत ने अन्य परेशानियों की शिकायतें की. डॉ. सिंह के अनुसार एसिड से उठने वाला धुंआ 10 से 15 मिनट तक के अन्तराल में सांस में चला जाए तो अस्थमा, फेफडों में सूजन, फेफडों से जुडी बीमारी, नाक में छाले, होंठों और नाखूनों का नीला होना और किडनी खराब हो सकती है
पंचकर्म में मिला लकवे का इलाज
वाराणसी। बीएचयू स्थित सर सुंदरलाल चिकित्सालय की आयुर्वेद विंग में अब लकवे का इलाज संभव हो गया है। पंचकर्म विधि से काय चिकित्सा की ओपीडी में क्लीनिकल ट्रायल भी हो चुका है। विभाग के प्रो. जेएस त्रिपाठी की ओपीडी में आने वाले मरीजों को पंचकर्म विधि की बस्ति व पिंड स्वेद उपविधि दी गई जिनमें तीन महीने में अप्रत्याशित सुधार देखे गए। शोध को प्रो. त्रिपाठी के निर्देशन में डा. कुमार ज्ञान प्रकाश ने किया है।
प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि दिमाग की नसों में खून का थक्का एक्यूट ब्रेन अटैक का कारक है। मरीज का तुरंत इलाज होने से राहत मिलती है, जो जरूरी भी है। राहत मिलने के बाद मरीज लकवे का शिकार हो जाता है। उसकी पकड़ व चलने-बोलने की शैली बदल जाती है। वह सामान्य से अलग हो जाता है। थक्का जमने से होने वाले लकवे का इलाज पंचकर्म विधि से संभव है।
शोध विधि व औषधि रू प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि शोध के तहत ४५ मरीजों का समूह बनाया। सबसे अधिक फायदा उन मरीजों को मिला जिन्हें बस्ति स्वेद के साथ पिंड स्वेद दिया गया। इनकी संख्या १५ थी। बाकी दो समूहों को अलग विधियों से इलाज किया गया। हालांकि फायदा उन्हें भी हुआ लेकिन जल्दी श्रिकवरीश् बस्ति स्वेद व पिंड स्वेद से हुई। उन्होंने बताया कि पंचकर्म के तहत बस्ति स्वेद में बलादि निरुह बस्ति व पिंड स्वेद में शालि षष्टिक पिंड (बला दशमूल क्वाथ के साथ) औषधियां शामिल की गई। मरीजों का तीन महीने तक पंचकर्म विधि से इलाज किया गया। पाया गया कि उनकी पकड़ मजबूत हुई और चलना-बोलना सामान्य हो गया।
एसिडिटी से बचने का घरेलू नुस्खा
ज्यादा मिर्च मसालेदार खानें, लम्बे समय तक बदपरहेजी करने से व अन्य कई कारणों से पित्त बिगड जाता है और मनुष्य पेट में होने वाली जलन से परेशान हो जाता है, ऐसे रोगियों के लिये एक घरेलू नुस्खा लिख रहा हूँ, आशा करता हूँ कि आप अवश्य लाभ उठायेंगें।
नुस्खा इस प्रकार है,
ऑवला चूर्ण 100 ग्राम
लौंग 20 ग्राम
खाने का सोडा 20 ग्राम
देशी खाण्ड या मिश्री 100 ग्राम
सबको मिलाकर बारीक पीस लें, और air tight डिब्बे में भर लें। यह चूर्ण 3-3 ग्राम की मात्रा में दिन में दिन में 3-4-5 बार तक पानी के साथ अथवा बिना पानी के साथ भी लें सकते हैं।
मिल गया खर्राटों का इलाज
कभी ना कभी किसी के खर्राटों ने आपको जरूर परेशान किया होगा। इसमें आपकी पत्नी/पति से लेकर परिवार को कोई सदस्य या दोस्त हो सकता है लेकिन वैज्ञानिकों ने इस पेरशानी का हल निकालने का दावा किया है।
उनके अनुसार यदि शरीर को सोते समय थोड़ा उंचा रखा जाए तो खर्राटों से आराम मिलता है और वजन भी कम होता है।
खर्राटों से निजात के लिए एक उपकरण भी तैयार किया गया है जिसे कंटीन्युअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर नाम दिया गया है। इस उपकरण को मास्क की तरह से पहना जाता है।
जर्मनी के शोधकर्ताओं ने माना कि खर्राटे का कोई निश्चित कारण नहीं होता। फिर भी जीभ का बड़ा होना, पुरानी सर्दी और मोटापा जैसे कारणों को हम खर्राटों का कारण मान सकते हैं।
अधिक खर्राटे आने पर पालीसाइटमियो नामक रोग भी हो सकता है। इस रोग में खून में रक्त कणों की गाठे सी बन जाती है। शोधकर्ताओं ने ये निष्कर्ष कई पुरूषों और महिलांओ पर शोध करके निकाला है।
खर्राटे लेने का पता आपको अपने आप तो नहीं लग पाता ये बात आपको आपका पार्टनर बताता है। जैसे ही आपको इस बात का पता चले आपको तुरंत डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए और उचित इलाज कराना चाहिए।
जिन लोगों की सांस नली में कोई परेशानी होती है उन्हें भी खर्राटे आने लगते हैं। खर्राटे नवजात शिशु से लेकर बुजुर्ग तक किसी को भी आ सकते हैं।
आप भी पढ़िए चमत्कारी तुलसी के लाभ
आयुर्वेद ही नहीं, अब एलोपैथी भी तुलसी के गुणों को मानने लगी है। विशेषज्ञों ने स्वीकार किया है कि तुसली मनुष्य के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होती है और मलेरिया, डेंगू, खांसी, सर्दी-जुकाम आदि विभिन्न जानलेवा बिमारियों से बचाती है।
तुसली के इन्हीं गुणों से आकर्षित होकर कानपुर के जाजमऊ निवासी रामेश्वर कुशवाहा ने कई वर्षो तक इसके गुणों पर शोध किया और कुछ जड़ी-बूटियों का सम्मिश्रण विशेष पंच तुलसी अर्क (पंचामृत) तैयार किया। यह अर्क काफी लोगों को रोग मुक्त कर चुका है।
चमत्कारी तुलसी के लाभ कुशवाहा बताते हैं कि 14 वर्ष पहले तुलसी पौधों के गुणकारी नुस्खे उन्होंने आयुर्वेद की एक किताब में पढ़ी तो इस पर शोध की जिज्ञासा जगी। इसके बाद उन्होंने इस पर शोध शुरू किया। इस दौरान उन्होंने आसवन विधि से तुसली अर्क तैयार किया। इस अर्क से वह अलग-अलग बीमारियों का उपचार कर हजारों मरीजों को फायदा दिला चुके हैं। उन्होंने बताया कि उन पर एक समय तुलसी के पौधे बांटने की धुन सवार हुई।
इस शौकिया मुहिम का रंग ऐसा चढ़ा कि कारोबार भी पीछे छूट गया और अब दो साल से कारोबार बेटे के हवाले कर वह लोगों को नि:शुक्ल अर्क वितरित कर रहे हैं। वह कहते हैं कि तुलसी का विशेष अर्क पंच अमृत यानी रामा, श्यामा, बरबरी, कपूरी व जंगली पांच तरह की तुलसी के पौधों की पत्तियों को मिश्रित कर तैयार किया जाता है।
इनकी पत्तियों को गर्म पानी के ड्रम में डालकर वाष्प के जरिए अर्क निकालकर आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के मिश्रण से अलग-अलग बीमारियों में उपचार के लिए तैयार करते हैं। उन्होंने बताया कि यह अर्क ब्लड कोलेस्ट्रोल, एसिडिटी, पेचिस, कोलाइटिस, स्नायु दर्द, सर्दी-जुकाम, सिरदर्द, उल्टी-दस्त, कफ, चेहरे की क्रांति में निखार, मुंहासे, सफेद दाग, कुष्ठ रोग, मोटापा कम, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, मलेरिया, खांसी, दाद, खुजली, गठिया, दमा, मरोड़, आंख का दर्द, पथरी, नकसीर, फेफड़ों की सूजन, अल्सर, पायरिया, शुगर, मूत्र संबंधी रोग आदि रोगों में फायदेमंद है लेकिन गर्भवती महिलाओं द्वारा इसके सेवन व कुछ बीमारियों में इस्तेमाल के तरीके अलग हैं।
इसलिए सावधानी व परामर्श भी जरूरी है। तुलसी अर्क पर शोध करने वाले कुशवाहा कहते हैं कि सुबह व शाम दो बूंद अर्क का नियमित सेवन करने से रोग नहीं पकड़ते हैं। यही नहीं, तुलसी के पत्तों की चाय भी काफी असरकारक होती है।
ऑस्टियो-अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज मिला
घुटनों के दर्द की दर्दनाक बीमारी ऑस्टियो-अर्थराइटिस अब लाइलाज नहीं रहेगी। आयुर्वेदिक दवाओं से बेहद कम खर्च में इस रोग से मरीज को न सिर्फ निजात मिल जाएगी, बल्कि व पहले की तरह सामान्य जीवन जी सकेगा। इतना ही नहीं इसके इलाज में दवाओं पर खर्च लगभग 2 हजार रुपए आएगा।
नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर आयुर्वेद, सिद्दा, मानव संसाधन विभाग विभाग की रिसर्च विंग के रिसर्च अधिकारी डॉ. अनिल मंगल की टीम ने 10 माह तक 60 मरीजों पर आयुर्वेद की तीन दवाओं का सफल प्रयोग किया। सितंबर में उक्त प्रोजेक्ट की रिपोर्ट आयुष विभाग को भेजी जाएगी।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आयुष विभाग के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद की आमखो स्थित रिसर्च इंस्टीट्टयूट के रिसर्च अधिकारी डॉ. अनिल मंगल को आयुष विभाग ने आयुर्वेद की दवाओं के रिसर्च के संबध में एक प्रोजेक्ट सौंपा।
आयुर्वेद के ग्रंथ भेषजीय रत्नावली में वर्णित दवाएं वातारी गुग्गल, महारास्नादि क्वाथ और नारायण तेल के प्रयोग पर आधारित उक्त रिसर्च प्रोजेक्ट की अवधि 12 माह तय की गई। अक्टूबर 2013 में ऑस्टियो-अर्थराईटिस के 60 गंभीर मरीजों का चयन कर उनकी सहमति से रिसर्च के लिए पंजीयन किया और सितंबर 2013 से डॉ. मंगल ने रिसर्च की विधिवत शुरुआत की।
30 फीसदी मरीजों की हालत थी बेहद गंभीर
प्रोजेक्ट में शामिल 60 मरीजों में से 35 से 65 वर्ष की आयु सीमा के हैं। उक्त मरीजों में से 60 फीसदी महिला मरीज हैं। महिलाओं में कैल्शियम की कमी के चलते भी ऑस्टियो-अर्थराइटिस बेहद दर्दकारक होता है। उक्त प्रोजेक्ट में शामिल 30 फीसदी महिला मरीज बेहद गंभीर स्थिति में थीं। वहीं महिला मरीज ऐसी भी हैं, जिन्हें उठने-बैठने में काफी कष्ट था, लेकिन अब वे सामान्य जीवन जी रहीं हैं।
दस माह में दर्द दूर, अब करते हैं मॉर्निंग वॉक
ऐसे गंभीर मरीजों पर लगातार 10 माह तक दवाओं के प्रयोग से जून 2014 के अंत तक सभी मरीज सीढ़ियां चढ़ रहे है। मॉर्निंग वॉक पर जा रहे हैं। वहीं इनके घुटनों में ऑस्टियो-अर्थराइटिस के कारण आई विकृतियां भी 90 फीसदी तक दूर हुई और सभी जांच रिपोर्ट सामान्य आई है। 60 में से 20 ऐसे मरीज भी थे, जिन्हे सामान्य तरह से चलने में काफी कष्ट था वे वॉकर पकड़कर चलते थे।
112 दिन तक तीन दवाओं के प्रयोग
भेषजीय रत्नावली ग्रंथ में वर्णित आयुर्वेदिक औषध वातारी गुग्गुल जिसमें पांच दवाओं का योग है, जिनमें रासना, ऐरंड, गुग्गुल, त्रिफला और सौंठ आदि पांच दवाएं शामिल हैं। इसके अलावा महारास्नादि क्वाथ और नारायण तेल का भी प्रयोग इस प्रोजेक्ट के मरीजों पर किया गया। उक्त दवाएं मरीजों को 112 दिन तक लगातार दी गईं, जिनके प्रयोग से मरीजों के घुटनों का दर्द तो दूर हुआ ही साथ घुटनों के भीतर पाए जाने वाले सायनोवियल फ्लूड की मात्रा भी संतुलित हुई और हड्डियों की रगड़न के कारण आने वाली आवाज भी बंद हुई है।
क्या है ऑस्टियो-अर्थराइटिस रोग
घुटनों के जोड़ों के सायनोवियल फ्लूड के कम होने से जोड़ों की अस्थियां रगड़ने से दर्द बढ़ता है। नर्व कमजोर होने से घुटनों की शक्ति कम हो जाती है। ऐसे मरीज को सीढ़ियां चढ़ने-उतरने, उठने बैठने में कष्ट का अनुभव होता है। सर्दियों में यह रोग बेहद कष्टदायी हो जाता है।
‘ऑस्टियो-अर्थराइटिस पर रिसर्च प्रोजेक्ट सफल रहा, जिसकी फाइनल रिपोर्ट सितंबर में आयुष विभाग को भेजेंगे। प्रोजेक्ट से निष्कर्ष निकला है कि महज 2 हजार रुपए की दवाएं तीन माह तक यदि गंभीर मरीज ले तो वह पूरी तरह से इस रोग से मुक्त हो सकता है।
डॉ.अनिल मंगल,
रिसर्च अधिकारी, नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर आयुर्वेद, सिद्दा, मानव संसाधन, आयुष विभाग, भारत सरकार
गैस्ट्रिक की प्रॉबलम से बचने के लिए क्या करें
रुटीन या खानपान में जरा सी गड़बड़ गैस्ट्रिक समस्याओं को बढ़ा सकती है। ऐसे में गैस्ट्रिक समस्याओं से निजात के लिए कुछ घरेलू उपाय मददगार हो सकते हैं।
अगर आपको अक्सर इस तरह की समस्याएं होती हैं तो सैर और व्यायाम के साथ इन घरेलू उपायों को रुटीन में शामिल करने से आपको आराम मिल सकता है। पाने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं:
१. गुनगुना पानी: गुनगुना पानी पीने से न सिर्फ पाचन ठीक होता है बल्कि यह अपच से होने वाले पेट दर्द में भी आराम पहुंचाता है। गैस्ट्रिक की समस्या अधिक हो तो गर्म पानी में अज्वाइन या जीरा खौलाकर पीने से भी तुरंत आराम मिलता है।
२. काली मिर्च: आयुर्वेद में काली मिर्च के सेवन को गैस्ट्रिक समस्याओं का प्रभावी इलाज माना गया है। यह शरीर में लार और गैस्ट्रिक जूस की मात्रा बढ़ाती है जिससे पाचन आसानी से होता है और गैस्ट्रिक दिक्कतें दूर होती हैं। ३. छाछ: छाछ का सेवन न सिर्फ पाचन ठीक रखता है बल्कि इसमें मौजूद लैक्टिक एसिड गैस्ट्रिक समस्याओं को भी दूर करता है। पेट में जलन और अपच दूर करने में भी यह मददगार है।
४. सौंफ: यह न सिर्फ गैस्ट्रिक समस्याओं से दूर रखने में मददगार है बल्कि मुंह का स्वाद भी खराब नहीं होने देता है। इसके सेवन से गैस्ट्रिक व एसिड रिफ्लक्स जैसी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।
५. अदरक: इसके रस में गर्म पानी और शक्कर मिलाएं और इसका सेवन करें। आयुर्वेद में इस मिश्रण को पेट से संबंधित समस्याओं को दूर करने में प्रभावी माना गया है। चाहें तो अदरक वाली काली चाय भी पी सकते हैं।
६. नींबू: कई शोधों में नींबू का सेवन गैस्ट्रिक, अपच, हार्ट बर्न जैसी समस्याओं के उपचार में मददगार माना गया है। नींबू के रस में पानी मिलाकर पीने से कॉन्स्टिपेशन की समस्या नहीं होती है और पाचन ठीक रहता है। सुबह का समय इसके सेवन के लिए सबसे सही माना जाता है।
७. अजवाइन: अजवाइन के दानों के सेवन से गैस्ट्रिक संबंधी समस्याओं में मिनटों में आराम मिल सकता है। आधा चम्मच अजवाइन और आधा चम्मच नमक का सेवन गर्म पानी के साथ करने से गैस्ट्रिक संबंधी समस्याएं खत्म हो जाती हैं।
बस 2 मिनिट में दूर भगाइए डायबिटीज
लंदन। एक अध्ययन का दावा है कि हर सप्ताह दो मिनट की कड़ी मेहनत वाली कसरत (एचआईटी) भी ‘टाइप 2 मधुमेह’ को दूर भगा सकती है। ब्रिटेन के एबर्टे यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का मानना है कि स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए एचआईटी ही लोगों के लिए उपयुक्त तरीका है।
अध्ययन में ज्यादा वजन वाले वयस्कों (जिनमें मधुमेह होने का खतरा अधिक है) ने आठ सप्ताह के लिए एचआईटी की प्रक्रिया का पालन किया। जिसके तहत सप्ताह में दो बार कसरत वाली बाइक को तेजी से चलाना था और इसे छह सेकंड में पूरा करना था। हर सत्र में इस प्रक्रिया को दस बार में पूरा करना था और हर सप्ताह अ5यास के लिए केवल दो मिनट का समय देना होता था। शोधकर्ताओं ने बताया कि बेहद कम समय लेकिन कड़ी मेहनत वाली यह कसरत हृदय स्वास्थ्य से संबंधी (कार्डियोवास्कुलर हेल्थ) और इंसुलिन की संवेदनशीलता में सुधार ला सकती है। यह लोगों में रक्त में मौजूद ग्लूकोज के स्तर को कम करने में सक्षम है। पहली बार इस तरह के बेहद अल्प अवधि वाले व्यायाम से स्वास्थ्य में सुधार होने के संकेत मिले हैं। इसी दल द्वारा इससे पहले किए गए शोध में यह पता चला था कि एक सप्ताह में तीन बार एचआईटी सत्र जरूरी है। लेकिन इस अध्ययन ने इस बात को साबित किया है कि सप्ताह में केवल दो मिनट के व्यायाम से भी बेहतर स्वास्थ्य हासिल किया जा सकता है।
खांसी के हमले से कैसे बचें
हालांकि खांसी का हमला आमतौर पर सर्दी या फ्लू से पीडि़त होने के कारण होता है, लेकिन यह किसी भी समय हो सकती है। इसका कारण गले में संक्रमण, धूम्रपान, बदलता मौसम, ठंडे और गरम को एक साथ लेना, या फिर धूल या किसी अन्य चीज से एलर्जी हो सकता है।
खांसी का हमला आपकी दैनिक गतिविधियों को भी प्रभावित कर सकता हैं। इसके अलावा इसका सार्वजनिक होना, किसी के लिए भी शर्मनाक हो सकता हैं। लेकिन घबराइए नहीं क्योंकि कई ऐसे तरीके हैं जिन्हें अपनाकर आप खांसी के हमले को रोक सकते हैं। आइए ऐसे ही कुछ उपायों के बारे में जानें।
तैयार रहें
इस समस्या से निपटने का सबसे अच्छा तरीका है कि कभी भी होने वाले इस खांसी के हमले के लिए आप खुद को तैयार करें। खांसी और एलर्जी की दवा और इनहेलर मौजूद होने पर आप इस हमले से बेहतर तरीके से लड़ पायेंगे। खांसी का दौरा पड़ने पर खांसी की दवा को धीरे-धीरे चूसें।
हमले का कारण एलर्जी
अधिकांश एलर्जी आपको अत्यधिक खांसी के हमले पर ला सकती हैं। अगर आपको एलर्जी की समस्या है तो खांसी के हमलों से बचने के बारे में अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए। एलर्जी के मौसम के दौरान एलर्जी दवा का सेवन खांसी के हमले को कम कर सकता है।
गर्म-तरल पदार्थ
खांसी के हमले के दौरान कई लोग पानी लेते हैं। लेकिन ठंडा पानी पीने की बजाय, गर्म पानी खांसी के हमले को रोकने के लिए बहुत ही कारगर हो सकता है। नींबू और शहद के साथ गर्म चाय खांसी के हमले को रोकने का शानदार तरीका है। क्योंकि चाय में प्राकृतिक सुखदायक प्रभाव और शहद में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल तत्व खांसी को तुरंत कम कर देते है। शहद के साथ गर्म दूध पीना खांसी को शांत करने का एक और तरीका है। इसलिए जब आपको आम सर्दी या खांसी पकड़ लें तो इससे बचने के लिए इसका सेवन कीजिए।
वातावरण भी करता है प्रभावित
वातावरण भी खांसी के हमले का कारण हो सकता है। जब आपको खांसी का हमला हो तो कमरे से बाहर ठंडी जगह पर जाये। इसके अलावा तंग कपड़ों को ढीला कर दें। सर्दियों में भी इसी तरह खांसी का कारण शुष्क वातावरण हो सकता है। बाहर की सूखी हवा को कम करने के लिए घर को गर्म करें और हवा में नमी को पुनः निर्माण करें ताकी आपको खांसी को दूर रखने में मदद मिल सकें।
सांसों पर नियंत्रण
खांसी को नियंत्रित करने की कोशिश करने के लिए आपको अपनी सांसों पर नियंत्रण करने का प्रयास करना चाहिए। अपनी नाक के माध्यम से धीरे धीरे सांस लेने का प्रयास करें। खांसी शांत करने के लिए एक कप चाय के रूप में गर्म पेय पीना खांसी के हमले को गंभीरता से कम कर देता है। शहद की एक चम्मच भी खांसी में चिड़चिड़ा महसूस करने को खत्म करने में आपकी मदद करता है।
धूम्रपान बिलकुल भी न करें
एक्टिव और पेसिव धूमप्रान से बचें। स्मोकी कमरे या अन्य स्मोकी स्थानों से बचें। क्योंकि यह आपके गले को नुकसान पहुंचा सकते हैं और यह हवा में उपस्थित धुआं फेफड़ों को प्रभावित कर आपकी सांस में परेशानी पैदा कर सकता है। धूम्रपान कर रहें व्यक्ति के नजदीक बैठना भी एलर्जी से प्रभावित होने वाले व्यक्ति में सांस की तकलीफ और खांसी को बढ़ा देता है।
अरोमाथेरपी करायें
अगर आप खांसी के हमलों से ग्रस्त हैं तो आप अरोमाथेरपी का सहारा ले सकते हैं। इसके लिए नीलगिरी के तेल की तीन बूंदें, थाइम तेल की दो बूंदें और मुलायम या पिघले हुए नारियल तेल के दो चम्मच को मिलाकर मिश्रण बन लें। इस मिश्रण को छाती पर लगाये और गहरी सांस लें। ज्यादातर मामलों में, खांसी एक छोटी सी झुंझलाहट और समय के साथ हल हो जाती है। अगर ऐसा नहीं होता है, तो अपने चिकित्सक की सलाह लीजिए।
जानिए पेन किलर्स के आयुर्वेदिक अल्टरनेट
भागदौड़ भरी जिंदगी में अक्सर हमें बॉडी पेन का सामना करना पड़ता है। दर्द ज्यादा हो तो हम उससे छुटकारा पाने के लिए पेन किलर ले लेते हैं लेकिन हम आपको बता दें लंबे समय तक पेन किलर खाने से स्वास्थ पर कई गलत असर पड़ते हैं।
आज हम आपको बता रहे हैं ऎसे पांच मसालों के बारे में जिनकी मदद से आप आसानी से दर्द से छुटकारा पा सकते हैं और उनका शरीर पर कोई साइड इफेक्ट भी नही होगा।
अदरक-ताजा कटा अदरक जिंजर ड्रिक में, डेजर्ट मे और खाने में बहुत ही लाभदायक होती है। ये डाइजेस्टिव होती है और एंटी इनफ्लेमेटरी से भरपूर होती है। अदरक आर्थराइटिस में बहुत लाभदायक होती है।
मिंट -हर किसी को मिंट का स्वाद पसंद नहीं होता है। लेकिन मिंट खाने के स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ एक ऎसा हर्ब है जिसकी मदद से पीठ दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है। मिंट पेट संबंधी सारी परेशानियों को भी दूर करने में मदद करता है।
ग्रीन टी -ग्रीन टी का सबसे बड़ा फायदा ये है कि ये केंसर को रोकने में सबसे बेहतर काम करता है। इसे पीने से वजन नियंत्रित रहता है। ये मसल्स पेन में सबसे ज्यादा फायदा करती है।
सौंफ- सौंफ रसोई मे मसालों के रूप में काम आती है। सौंफ खाने से पेट दर्द नहीं होता है। पाचन तंत्र सही रहता है। जिन महिलाओं को पिरियड्स के दिनों में हैवी ब्लडिंग होती है उन्हें सौंफ खाने से फायदा मिलता है। सिकी हुई सौंफ स्वाद में अच्छी लगती है और लोग इसे खाने के बाद मुख शुद्धी के लिए खाना पसंद करते हैं।
अजवायन -अजवायन के पत्ते एटी ऑक्सिडेंट की तरह से काम करते हैं। इन पत्तों को कई स्वादिष्ट डिश बनाने के काम मेें लिया जाता है। ये शरीर की टूट फूट की मरम्मत करने में शरीर की मदद करती है। इसे जोड़ों के दर्द में खाने से फायदा मिलता है।
घरेलू उपचार